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Dhari Devi Mandir: इस मंदिर का रहस्य जान चौंक जाएगें आप…माता का है अलौकिक मंदिर…

Written By: गली न्यूज

Published On: Friday December 15, 2023

Dhari Devi Mandir: इस मंदिर का रहस्य जान चौंक जाएगें आप…माता का है अलौकिक मंदिर…

Dhari Devi Mandir: भारत में हिंदु धर्म को मानने वालें लोग रहते है। इस वजह से भारत के कोने-कोने में कई रहस्यमय और प्राचीन मंदिर है। एक ऐसा ही मंदिर (Mandir)उत्तराखंड के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है। आएये जानते है यह रहस्मय मंदिर कौन सा है।

धारी देवी का मंदिर ऐसा है

उत्तराखंड के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर को धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Mandir)के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। मंदिर को देखते ही आपको ऐसी अनुभूति होगी जैसे साक्षात माता धारी देवी आपको दर्शन दे रही है । माता के प्रगंड में पहुंचते-पहुंचते भक्तगण माता की भक्ति में लीन हो जाते है ।  देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।

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एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।

कहते हैं कि मां धारी के मंदिर को साल 2013 में तोड़ दिया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से उस साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके कुछ ही घंटों बाद राज्य में आपदा आई थी। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया।

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