Noida News: तैयार हो गया सीईओ का मास्टर प्लान, जल्द ही 7 स्टार की तरफ बढ़ेगा नोएडा
Noida News: उत्तर प्रदेश में जारी की गई स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिग में दस लाख तक की आबादी वाले शहरों की तुलना में नोएडा ने पहला स्थान हासिल किया है। लेकिन फिर भी कुछ पैरामीटर ऐसे हैं, जिनकी वजह से नोएडा देश में पहले पायदान पर पहुंचने से चूक गया। अगर इन दो समस्याओं का समाधान तलाश लिया जाता तो आज नोएडा देश में नंबर वन होता। नोएडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ. लोकेश एम. इन दो समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे? यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
क्या है पूरा मामला
खबर के अनुसार नोएडा में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने गुरुवार को स्वच्छ सर्वेक्षण-2023 के परिणाम जारी किए हैं। एक से 10 लाख की आबादी वाले शहरों में नोएडा को पूरे देश में 14वीं रैंकिंग मिली है। हालांकि, इसमें एक अच्छी खबर यह है कि उत्तर प्रदेश में नोएडा नंबर वन आया है। जिससे पता चलता है कि केवल दो पैरामीटर ऐसे हैं, जिनकी वजह से नोएडा देश में पहले पायदान पर पहुंचने से चूक गया। अगर इन दो समस्याओं का समाधान तलाश लिया जाता तो आज नोएडा देश में नंबर वन होता। नोएडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ. लोकेश एम. इन दो समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे? यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
इन आठ पैरामीटर पर तय की गई रैंकिंग
स्वच्छता सर्वेक्षण में साफ और गंदगी मुक्त शहरों की रैंकिंग तय करने के लिए आठ पैरामीटर इस्तेमाल किए जाते हैं। इनकी ग्राउंड रिपोर्ट लेकर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की तरफ से सूची जारी की जाती है। इसमें डोर टू डोर कलेक्शन ऑफ़ वेस्ट, सोर्स सेग्रीगेशन, वेस्ट जेनरेशन और प्रोसेसिंग, रिमेडियेशन का डंप साइट्स, क्लीनलीनेस का रेजिडेंशियल एरियाज, क्लीनलीनेस का मार्केट एरियाज, क्लीनलीनेस ऑफ़ वाटर बॉडीज और क्लीनलीनेस ऑफ पब्लिक टॉयलेट्स को पैरामीटर के तौर पर रखा गया था। नोएडा को सोर्स सेग्रीगेशन में 100 में 74 अंक और वेस्ट जेनरेशन और प्रोसेसिंग को 91 अंक मिले हैं। डोर टू डोर कलेक्शन ऑफ़ वेस्ट में 99 अंक और बाकी बचे 5 पैरामीटर को 100 में 100 अंक मिले हैं। कुल मिलकर सफाई व्यवस्था को सुधारने की तैयारियों के बीच शहर से निकलने वाले कूड़े के निस्तारण की योजना पटरी पर नहीं आ रही है। इसके पीछे बड़ा कारण गीला कूड़ा और उसके बड़े उत्पादक हैं।
हर दिन 8 लाख 69 हजार रुपये का खर्च
सफाई व्यवस्था को सुधारने की तैयारियों के बीच शहर से निकलने वाले कूड़े के निस्तारण की योजना पटरी पर नहीं आ रही है। इसके पीछे बड़ा कारण गीला कूड़ा और उसके बड़े उत्पादक हैं। अगस्त-2020 में नोएडा अथॉरिटी ने यह नियम शहर में लागू किया था कि सभी बल्क वेस्ट जनरेटर अपने यहां से निकलने वाले गीले कूड़े का निस्तारण परिसर के अंदर ही प्लांट लगाकर करेंगे। इनमें होटल, रेस्तरां, हॉस्पिटल, सोसायटी, कंपनी, गेस्ट हाउस और दफ्तर बड़े स्तर पर गीला कूड़ा जनरेट करने वाले संस्थान शामिल हैं। कुछ को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर ने तीन साल में कूड़े का निस्तारण नहीं शुरू किया है। अथॉरिटी इन बड़े कूड़ा उत्पादकों का मौजूदा समय में 400 मीट्रिक टन कूड़े का बोझ उठा रही है। इसमें प्रतिदिन करीब 8 लाख 69 हजार 600 रुपये का खर्च भी आ रहा है।
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कार्रवाई नहीं कर रहा जन स्वास्थ्य विभाग
पिछले एक साल से सफाई व्यवस्था को लेकर अथॉरिटी में होने वाली बैठकों में बड़े कूड़ा उत्पादक मुद्दा बन रहे हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम -2016 के तहत नोएडा में लगाए जाने वाले जुर्माना की गणना भी हो चुकी है। आवासीय परिसर के लिए 10 हजार रुपये, मार्केट एसोसिएशन के लिए 20 हजार, गेटेड कम्युनिटी के लिए 10 हजार और संस्थानों पर 10 हजार रुपये का जुर्माना गीले कूड़े का निस्तारण न करने पर अथॉरिटी लगा सकती है। इसी तरह रेस्तरां पर 20 हजार रुपये, होटल पर 50 हजार, इंडस्ट्रियल यूनिट और खाद्य पदार्थों का ब्रॉड निर्माता जो पैकिंग कर कई जगहों पर बेचता हो, उस पर भी 1 लाख रुपये का जुर्माना तय हुआ है। अब जो नियम का पालन नहीं कर रहे हैं, उन पर अथॉरिटी जुर्माना लगा रही है। लेकिन, जन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी निरीक्षण या कार्रवाई के लिए नहीं निकल रहे हैं।