Uttar pradesh Lift Act: आखिर कब होगा लिफ्ट एक्ट लागू ? यूपी सरकार ने बता दिया समय…
Uttar pradesh Lift Act: यूपी में नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, वाराणसी जैसे बड़े शहरों में लगी लिफ्ट का कभी भी, कहीं भी चलते-चलते रुक जाना आम है. अक्सर हादसे भी हो रहे हैं. इनमें लोग घायल हो रहे, मौतें हो रही हैं लेकिन सरकारी सिस्टम फिलहाल मौन है. हाँ, हाल कि गतिविधियों से एक उम्मीद जरूर बनी है कि शायद बात बन जाए. यूपी सरकार अगले विधानसभा सत्र में लिफ्ट एक्ट को लेकर बिल लेकर आएंगे.
नोएडा प्रशासन ने कुछ साल पहले लिफ्ट के लिए नियम-कानून बनाने की सिफारिश राज्य सरकार से की और फिर हाथ पर हाथ धरकर अफसर बैठ गए. पता चला है कि लोक निर्माण विभाग ने भी कोई मसौदा बनाकर रखा हुआ है, लेकिन वह भी फ़ाइलों में कहीं बंद पड़ा है. आरडब्ल्यूए आए दिन इस मसले पर धरना-प्रदर्शन करते आ रहे हैं लेकिन सुनवाई कोई नहीं है. हाल ही में जेवर के एमएलए धीरेन्द्र सिंह ने यह मामला सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने उठाया है. इससे उम्मीद बनी है कि शायद अब बात बने.
लाखों लोगों को मिलेगी राहत
बता दें कि, साल 2023 की शुरुआत में उपभोक्ता मंत्रालय ने राज्यों को एक पत्र भेजकर लिफ्ट को लेकर जागरूक किया. लिफ्ट को लेकर हुई घटनाओं, बयानों, मेल-मुलाकातों ने एक उम्मीद बना दी है. उत्तर प्रदेश सरकार इस दिशा में कोई ठोस पहल करते हुए एनसीआर की जनता को लिफ्ट और बिल्डर के आतंक से मुक्ति दिला दे. हालांकि, इस सिलसिले में अब जो भी होगा अगले विधानसभा सत्र में ही पता चल पाएगा. देखना रोचक होगा कि लोक निर्माण विभाग और नोएडा प्रशासन के प्रस्ताव की फाइल बाहर आकर लिफ्ट एक्ट का रूप कब तक लेती है?
अगर सरकार ऐसा करती है तो लाखों निवासियों को राहत मिलेगी. बात भले ही नोएडा से उठी है लेकिन बहुमंजिली इमारतें अब उत्तर प्रदेश के हर बड़े शहर में बड़ी संख्या में बनती जा रही हैं, चाहे पीएम सिटी काशी हो या सीएम सिटी गोरखपुर. लखनऊ, कानपुर, बरेली, मुरादाबाद, प्रयागराज जैसे शहरों में बहुमंजिली इमारतों की संख्या रोज बढ़ती जा रही है.
महाराष्ट्र में 1939 से लागू है कानून
देश में लिफ्ट एक्ट में सबसे आगे महाराष्ट्र (बॉम्बे) रहा है, जहां बहुमंजिली इमारतों की भरमार है. यहां साल 1939 में कानून बनकर लागू हुआ था. फिर इसमें संसोधन भी हो चुका है. इस एक्ट में लिफ्ट और एक्सेलेटर को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं. अभी तक सिर्फ महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, केरल, झारखंड, असम और हिमाचल प्रदेश ने अपने यहां लिफ्ट एक्ट लागू करते हुए नियम-कानून बनाए हैं.
क्या है लिफ्ट एक्ट ?
ये सभी कानून लिफ्ट की स्थापना, रख-रखाव, समय-समय पर सरकारी तंत्र की ओर से जांच जैसे प्रावधान करते हैं. कहीं-कहीं मामूली अर्थदंड जैसे प्रावधान भी किए गए हैं. समय की मांग है कि जिस तरह से बहुमंजिली इमारतें बढ़ रही हैं, लिफ्ट में टेक्नॉलॉजी लगाने कि बात हो. अचानक लिफ्ट के फेल होने रुकने को डिवाइस लगे.
पता चला है कि यूपी सरकार इस कानून को पुख्ता तौर पर तैयार करना चाहती है. लिफ्ट के केस में टीन महत्वपूर्ण पक्ष सामने होते हैं. एक-लिफ्ट निर्माता कंपनी. दो-लिफ्ट कि मरम्मत यानी एएमसी लेने वाली कंपनी. तीन-बिल्डर या आरडब्ल्यूए. सरकार इन तीनों को कानूनी दायरे लेकर आना चाहती है. क्योंकि तीनों कि अलग-अलग और संयुक्त जिम्मेदारी है. कानून ऐसा बनेगा, जिसमें सरकारी तंत्र को भी जिम्मेदार ठहराया जाना है. एक अफसर ने बताया कि यह मामला अभी बहुत शुरुआती फेज में है लेकिन जो भी कानूनी ड्राफ्ट सामने आएगा, वह आने वाले कुछ सालों के विजन के साथ आएगा. लिफ्ट में और तकनीक का इस्तेमाल करने की बात होगी. इरादा आम जन कि सुरक्षा पर केंद्रित होगा न कि किसी को सजा देने पर. उसके लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं.
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जानकारी के लिए बता दें कि, एक लिफ्ट कि औसत आयु 20-25 साल ही हो सकती है, वह भी तब जब उसकी मरम्मत का ध्यान सभी पक्ष रखें. अगर उसमें कंजूसी हुई तो यह उम्र कम भी हो सकती है. नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के मुताबिक 15 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाली इमारत के लिए लिफ्ट अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और 30 मीटर से ऊंची बिल्डिंग के लिए स्ट्रेचर लिफ्ट भी अनिवार्य बताई गयी है. लिफ्ट के लिए जो सबसे जरूरी चीज है, वह निश्चित अंतराल पर उसकी मरम्मत है. अगर यह होता रहे तो दुर्घटना कि आशंका बहुत कम हो जाती है.