March 28, 2024, 9:52 pm

Uttarayani Fair: “उत्‍तरायणी मेले” की रौनक देखनी हो तो उत्‍तराखंड आएं, गाना गाकर बुलाया जाता है कौवे को…

Written By: गली न्यूज

Published On: Sunday December 18, 2022

Uttarayani Fair: “उत्‍तरायणी मेले” की रौनक देखनी हो तो उत्‍तराखंड आएं, गाना गाकर बुलाया जाता है कौवे को…

Uttarayani Fair: हिन्‍दुओं के सबसे पवित्र धार्मिक त्योहारों में से एक मकर सक्रांत‍ि (Makar Sankranti) भी है. इस दिन लोग (श्रद्धालु) पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपनी सभी पापों से मुक्‍ति पाते हैं. लगभग पूरे देश में मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है. 14 जनवरी और कुछ जगहों पर 13-15 जनवरी तक यह त्‍योहार मनाया जाता है. अलग-अलग राज्‍यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे मनाने के तरीके भी अलग-अलग है. अगर उत्‍तराखंड की  बात करें तो यहां पहाड़ों में मकर सक्रांति के त्‍योहार की रौनक ही कुछ और होती है.

कुमाऊं में घुघती त्योहार के नाम से जाना जाता है मकर सक्रांत‍ि

हिन्‍दू कलेंडर के अनुसार मकर सक्रांति सूर्य के कर्क राशि‍ से मकर राश‍ि में प्रवेश करने के उपलक्ष्‍य में मनाई जाती है. इस दिन को ऋतु परिवर्तन के रूप देखा जाता है. माना जाता है कि मकर सक्रांति के दिन से सूर्य धीरे-धीरे उत्‍तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू हो जाता है. धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं और गर्मी भी बढ़ने लगती है. इसके साथ प्रवासी पक्षी (migratory Bird) भी वापस पहाड़ों के ठंडे इलाकों की ओर रुख करते हैं. उत्‍तराखंड के कुमाऊं में इसे ‘उत्‍तरायणी’ और ‘घुघती’ के नाम से भी जाना जाता है, जबकि गढ़वाल में ‘खिचड़ी सक्रांति’ कहा जाता है. इस दिन यहां जगह-जगह मेलों का आयोजन होता है.

काले कौवा काले…घुघती माला खाले…

कुमाऊं में इस दिन आटे की घुघुत, खजूर आदि बनाए जाते हैं, जबकि गढ़वाल में ख‍िचड़ी खाने और दान देने का रिवाज है. कुमाऊं में कौवे को घुघुत ख‍िलाने का रिवाज है और इसके लिए कौवे को ‘काले कौवा काले, घुघती माला खाले’ गाकर बुलाया जाता है. आटे में सौंफ, गुड आदि मिलाकर इससे अलग-अलग आकार बनाए आते हैं और कुछ देर सुखाकर घी में तल लिया जाता है, इन्‍हें ही घुघुत कहते हैं. बच्‍चे घुघुत की माला बनाकर और उसे गले में डालकर गांव भर में में घूमते-फिरते हैं.

गढ़वाल में इस दिन उड़द दाल की खिचड़ी बनायी जाती है और पंतंग उड़ाने का रिवाज भी है. इस दिन ब्राह्मणों को उड़द दाल और चावल दान करने का रिवाज भी गढ़वाल में है. गांवों में इसे चुन्निया त्योहार भी कहा जाता है, जहां इस दिन खास किस्‍म के आटे से मालपुवे (चुन्निया) बनाए जाते हैं.

उत्‍तरायणी मेला

मकर सक्रांति के मौके पर उत्‍तराखंड में जगह-जगह उत्‍तरायणी मेलों का आयोजन होता है. कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों के लोग उत्‍तरायणी मेले का बेसब्री इंतजार करते हैं. बागेश्‍वर का उत्‍तरायणी मेला तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है. बागेश्‍वर के अलावा हरिद्वार, रुद्रप्रयाग, पौड़ी और नैनीताल जिलों में भी उत्‍तरायणी मेलों की रौनक देखने लायक होती है.

बागेश्‍वर-उत्‍तरायणी मेला-

बागेश्‍वर में सरयू और गोमती नदी के तट पर भगवान शिव के बागनाथ मंदिर के पास इस मेले का भव्‍य आयोजन होता है. मान्‍यता है कि इस दिन संगम में स्‍नान करने से सारे पाप कट जाते हैं. बागेश्‍वर में उत्‍तरायणी मेला 1 हफ्ते तक चलता है.

बागेश्‍वर पहुंचने के लिए नजदीकी पंतनगर एयरपोर्ट यहां से करीब 180 किमी दूर उधमसिंह नगर जिले में है. नजदीकी रेलवे स्‍टेशन बागेश्‍वर जिला मुख्‍यालय से करीब 160 किमी दूर काठगोदाम है, जो नैनीताल जिले में आता है. इसके अलावा बागेश्‍वर सड़क मार्ग से भी देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है.

कुछ प्रमुख शहरों से बागेश्‍वर की दूरी..

लखनऊ                556 किमी
नैनीताल                153 किमी
दिल्ली                   470 किमी
हरिद्वार                  309 किमी
देहरादून                328 किमी
अल्मोड़ा                 76 किमी
काठगोदाम            185 किमी
हल्द्वानी                  194 किमी

बागेश्‍वर में सरयू-गोमती व सुप्‍त भागीरथी के पावन संगम तट पर भगवान शिव के प्राचीन बागनाथ मंदिर के पास हर साल उत्‍तरायणी मेले का आयोजन होता है. यह मेला सांस्‍कृतिक आयोजनों और व्‍यापार का केंद्र होता है. मेले में संगम तट पर दूर-दूर से श्रद्धालु, भक्तजन आकर मुडंन, जनेऊ सरंकार, स्‍नान, पूजा-अर्चना करते है. मकर सक्रांति के दिन सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने पहुंच जाते हैं. मेले में बाहर से आए हुए कलाकार खास तरह के नाटकों का मंचन करते हैं, जबकि स्थानीय कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए स्थानीय संस्कृति की झलक दिखाते स्‍कूल-कॉलेजों से आए छात्र भी रंगारंग कार्यक्रम पेश करते हैं.

ये भी पढ़ें-

https://gulynews.com/car-driver-crushes-dog-in-ghaziabad/

उत्‍तरायणी मेले का इतिहास: बागेश्‍वर के उत्‍तरायणी मेले (Uttarayani Fair Bageshwar) का स्‍थानीय आंदोलनों से लेकर स्‍वतंत्रता संग्राम तक बहुत महत्‍व रहा है. 1921 में समाजसेवकों ने बधुआ मजदूरी के उन्मूलन के लिए यहीं से हुंकार भरी थी, जिसे आज भी ‘कुली बेगार’ नाम से जाना जाता है. 1929 में महात्‍मा गांधी भी भी बागेश्‍वर आए.

बागेश्‍वर में शिव मंदिर का निर्माण 1602 में उस समय कुमाऊं के राजा लक्ष्‍मी चंद ने करवाया था. हालांकि इतिहास की शुरुआत से ही इस जगह का अपना महत्‍व है. मंदिर में 7वीं से लेकर 16वीं शताब्‍दी तक की मूर्तियां हैं. माना जाता है कि मार्कंडेय ऋष‍ि यहां रहा करते थे और भगवान शिव बाघ के रूप में यहीं विचरण करते थे.

सु‍विधाएं: बागेश्‍वर जिला मुख्यालय है और यहां पर सभी तरह की आधारभूत सुविधायें जैसे होटल, रेस्टोरेंट, बैंक, पी.सी.ओ., डाकघर आदि हैं और मेले के दौरान यहां खास तरह के आयोजन किए जाते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published.