SC on Dowry Harassment: सुप्रीम कोर्ट का संसद से आग्रह, दहेज प्रताड़ना के कानून में बदलाव जरूरी…
SC on Dowry Harassment: दहेज प्रताड़ना कानून को लेकर बड़ी अपडेट है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना से जुड़े कानून में जरूरी बदलाव होना चाहिए। इस कानून का मिसयूज हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद से आग्रह किया है कि भारतीय न्याय सहिंता की धारी 85 और 86 में जरूरी बदलाव पर विचार करना चाहिए।
क्या है पूरा मामला
बतादें, सुप्रीम कोर्ट (SC on Dowry Harassment) ने दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून के मिसयूज पर चिंता जताई है। इसी के साथ कहा है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित नए कानून में जरूरी बदलाव करना चाहिए। भारतीय न्याय संहिता एक जुलाई से लागू होने जा रही है, जिसमें दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान धारा 85 और 86 में है। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 एक जुलाई से प्रभाव से लागू होने वाली है। ये धाराएं IPC की धारा 498A को दोबारा लिखने की तरह है। हम कानून बनाने वालों से अनुरोध करते हैं कि इस प्रावधान के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर विचार करना चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके। नए कानून में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून की परिभाषा में कोई बदलाव नहीं किया गया है, बस अलग से धारा 86 में दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान के स्पष्टीकरण का जिक्र किया गया है।
दहेज प्रताड़ना केस में सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की ओर से पति के खिलाफ दर्ज कराए गए दहेज प्रताड़ना के केस को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की है। केस को खारिज करने की पति की अर्जी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने ठुकरा दी थी जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि हम रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह इस मामले में जजमेंट को गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के मंत्री को भेजे।
2010 में भी की थी सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के अपने फैसले का जिक्र किया जिसमें उसने दहेज प्रताड़ना से जुड़े कानून के मिसयूज को रोकने के लिए कानून में बदलाव की सिफारिश संसद से की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 498A के मामले में जब शिकायत की जाती है तो कई बार मामले को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है। ऐसे में संसद से आग्रह है कि वह व्यावहारिक सचाई के मद्देनजर कानून में बदलाव पर विचार करें। कोर्ट ने कहा था कि समय आ गया है कि विधायिका को इस मामले पर विचार करना चाहिए।
पहले भी अदालतें कर चुकी हैं टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2022 को एक फैसले में कहा था कि 498A (दहेज प्रताड़ना कानून) में पति के रिलेटिव के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य फैसले में कहा था कि बहू की ज्वेलरी सुरक्षा के लिए अपनी सेफ कस्टडी में रखना कानून के तहत दहेज प्रताड़ना नहीं है। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी कि झूठी शिकायत क्रुअल्टी मानी जाएगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2003 में कहा था कि कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति, बल्कि उसके तमाम रिश्तेदारों को मामले में लपेट देती है। धारा-498A शादी की बुनियाद को हिला रहा है। एक अन्य फैसले में कहा गया था कि पुलिस दहेज प्रताड़ना मामले में लापरवाही से केस दर्ज नहीं करेगी, इसके लिए उसे इलाके के DCP रैंक के अधिकारी से अप्रूवल लेना होगा।
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सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में भी दहेज प्रताड़ना के कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी और संसद से इसमें जरूरी बदलाव का आग्रह किया था। यही नहीं, देश के अलग-अलग हाई कोर्ट भी कई बार इस कानून के दुरुपयोग को लेकर चिंता जता चुके हैं। दरअसल, दहेज प्रताड़ना गैर जमानती अपराध है और दोषी को तीन साल तक कैद हो सकती है। यह कानून महिलाओं को प्रोटेक्ट करने के लिए लाया गया था लेकिन इस कानून के मिसयूज के कई उदाहरण सामने आए। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार को कानून पर दोबारा विचार करना चाहिए ताकि कोई दोषी छूट ना पाए, लेकिन साथ ही किसी निर्दोष को लपेटा ना जा सके।