बिल्डरों के जाल में फंसे गौतमबुद्ध नगर के तीनों प्राधिकरण, अब ये हुआ हाल
Three Authorities Caught In trapped Of Builders in Gautam Budh Nagar: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में नोएडा अथॉरिटी (Noida Authority) को झटका दिया है. दरअसल, कंपनी के दिवालिया समाधान से जुड़े एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी को फाइनेंशियल क्रेडिट (financial credit) मानने से इनकार कर दिया. नोएडा प्राधिकरण का डिफॉल्ट रियल एस्टेट कंपनियों (default real estate companies) पर हजारों करोड़ रुपये बकाया हैं. ऐसे में प्राधिकरण यह पैसा वसूलने के लिए संघर्ष कर रहा है. अब प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की है. अगर इसमें भी सफलता नहीं मिलती तो गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरण सरकार से इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code) (IBC) में संशोधन करने की मांग करेंगे.
नोएडा की सीईओ रितु माहेश्वरी (CEO Ritu Maheshwari) ने कहा हमने सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की है. जिसमें हमने बैंकों की तरह वित्तीय लेनदार (financial creditor) का दर्जा मांगा है. अगर हमारी समीक्षा याचिका फेल हो जाती है तो सरकार से आईबीसी कानून में बदलाव करने की मांग करेंगे. बता दें कि, इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आईबीसी में मौजूद परिभाषा के आधार पर प्राधिकरण को दिवालिया कार्यवाही में एक परिचालन लेनदार (ऑपरेशनल क्रेडिटर) का दर्जा प्राप्त होगा, न कि वित्तीय लेनदार (फाइनेंशियल क्रेडिटर) माना जाएगा. ऐसे में प्राधिकरण लेनदारों की समिति (सीओसी) में नहीं रहेगा. इस कानून में वित्तीय लेनदार को शीर्ष पर रखा गया है, जो दिवाला समाधान प्रक्रिया का संचालन करते हैं और मतदान से लेकर पूरी देख रेख करते हैं.
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रितु माहेश्वरी ने कहा कि अगर नोएडा को वित्तीय लेनदार के रूप में नहीं माना जाता है तो दिवाला समाधान प्रक्रिया में हमारी कोई सुनवाई नहीं होगी और यह हमें बड़ा वित्तीय झटका होगा. उन्होंने कहा कि इससे प्राधिकरण की वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. यह शहर में विकास कार्यों के लिए हानिकारक होगा. बता दें कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों ने केवल 10% अग्रिम भुगतान पर डेवलपर्स को बड़ा भूमि आवंटन किया है. इससे बिल्डरों पर इनके हजारों करोड़ रुपये बकाया हो गए हैं. क्योंकि डेवलपर्स वक्त पर भुगतान नहीं किया. शहर में कई प्रमुख डेवलपर्स हैं, जिनके खिलाफ इन्सॉल्वेंसी कोर्ट (एनसीएलटी) में मुकदमे चल रहे हैं. जिसमें जेपी इंफ्राटेक, सुपरटेक, लॉजिक्स और 3-सी समूह की कंपनियां शामिल हैं. इन सभी पर विकास प्राधिकरण के हजारों करोड़ रुपए बकाया हैं.
ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं में भूमि आवंटन के सापेक्ष बिल्डरों पर नोएडा प्राधिकरण का कुल बकाया लगभग 12,000 करोड़ रुपये है. इसमें से लगभग 3,000 करोड़ रुपये दिवाला कार्रवाई में फंस गए हैं. तीनों प्राधिकरणों को मिलाकर बकाया राशि 30,000 करोड़ रुपये है. रितु माहेश्वरी ने कहा नोएडा अथॉरिटी वित्तीय लेनदार नहीं हैं. आईबीसी में इस स्थिति के कारण डेवलपर्स कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं.