Restaurant Free Water Case: रेस्टोरेंट ने नहीं दिया फ्री में पानी, कस्टमर ने लड़ी कानूनी लड़ाई…पड़ा हजारों रुपयों का जुर्माना
Restaurant Free Water Case: आज के दौर में ज्यादातर लोग रेस्टोरेंट में खाना, खाना पसंद करते हैं। लेकिन हाल ही में एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गए कस्टमर को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। दरअसल एक रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद जब शख्स ने पानी मांगा तो उसे प्लास्टिक की बोतल का पानी दिया गया, जिसके बाद उसने कहा कि प्लास्टिक से एलर्जी है और रेगुलर वाटर चाहता है। लेकिन रेस्टोरेंट ने उसे फ्री में पानी नहीं दिया। जिसके कारण उसने कानूनी लड़ाई लड़ी और रेस्टोरेंट को अपनी गलती मानते हुए हजारों रुपयों का जुर्माना भरना पड़ा।
क्या है पूरा मामला
बतादें, हैदराबाद (Restaurant Free Water Case) से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। दरअसल, यहां के एक रेस्टोरेंट मालिक को ग्राहक को पीने के लिए फ्री में पानी नहीं देना महंगा पड़ गया। इसके बाद शख्स को पानी के लिए भी पैसे चुकाने पड़े। इतना ही नहीं, शख्स से सर्विस चार्ज भी वसूले गए। इसके बाद शख्स ने हैदराबाद के ‘जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग-III’ में रेस्टोरेंट के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया।
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार शख्स की जीत हुई और हैदराबाद के ‘जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग-III’ में रेस्टोरेंट के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद जब शख्स ने पानी मांगा तो उसे प्लास्टिक की बोतल का पानी दिया गया, जिसके बाद उसने कहा कि प्लास्टिक से एलर्जी है और रेगुलर वाटर चाहता है। लेकिन कर्मचारियों ने उसे पानी देने से मना कर दिया। इसके बाद शख्स के पास 50 रुपये कीमत की आधा लीटर की पानी की बोतल खरीदने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा।
इस वजह से बढ़ा बिल
कस्टमर ने बताया की रेस्टोरेंट ने दो खाने की डिशेस और एक पानी की बोतल के लिए कुल 630 रुपये का बिल बनाया, जिस पर 31.50 रुपये का सर्विस टैक्स भी लगाया। वहीं, रेस्टोरेंट ने पानी की बोतल और सर्विस टैक्स दोनों पर 5% CGST और SGST लगाया, जिससे बिल बढ़कर 695 रुपये हो गया।
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कस्टमर ने कानूनी लड़ाई लड़ी
कानूनी लड़ाई के बाद आयोग ने रेस्टोरेंट को जीएसटी के साथ सर्विस टैक्स के कुल 33 रुपये वापस करने का आदेश दिया। इसके अलावा मार्च से 45 दिनों के भीतर पीड़ित ग्राहक को 5,000 रुपये का मुआवजा और मुकदमेबाजी में खर्च हुए 1,000 रुपये देने का भी आदेश दिया। आयोग ने फैसला सुनाते वक्त मुफ्त पानी देने से इंकार करने और सर्विस टैक्स लगाने के नियम को अस्वीकार्य किया। इसके लिए आयोग ने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों को आधार बनाया।