जहां बर्फ जमे थे वहां चल रही है लू.. आर्कटिक-अंटार्कटिक की बर्फ पिघल रही है।
गर्मी की शुरुआत में ही ख़तरे की घंटी विश्व पर छा रही है। ऐसा ख़तरा जिससे विश्व को बचाया नहीं जा सकता। एक बार उसकी शुरूआत हो जाए तो पलटा नहीं जा सकता। यही वजह है कि सभी साइंटिस्ट बेहद ही ज्यादा परेशान है।
आर्कटिक-अंटार्कटिक में बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ पिघल रही है। बताया जा रहा है कि हीटवेव के चलने से तापमान में 40 डिग्री से्सियस की बढ़ोतरी हुई है। जो कि विश्व के लिए चिंताजनक है।
इस बदलाव का मेन रीजन जलवायु है। समय-समय पर ग्रीनहाउस एमिशन को लेकर अलर्ट जारी किया जाते है। लेकिन ग्रीनहाउस गैस को कम करना मुश्किल होता जा रहा।
ग्रीनहाउस गैस एमिशन की वजह
ग्रीनहाउस गैसें को जीएचजी के नाम से भी जाना जाता है। यह गैसें तापमान को बढ़ने के लिए जिम्मेवार होती हैं। इन गैस में कार्बनडाइऑक्साइड (सीओ 2), मीथेन (सीएच 4), नाइट्रस ऑक्साइड (एन 2ओ), हाइड्रोफ्लूरोकार्बन (एचएफसी), परफ्लूरोकार्बन (पीएफसी), सल्फर हेक्साफ्लोराइड (एसएफ 6) शामिल हैं। जिनके ज्यादा एमिशन होने से ग्रीनहाउस इफेक्ट होता है।
इसलिए अलर्ट जारी किया जाता है कि इन गैसों का एमिशन कम किया जाए। अगर वक़्त से इन गैसों पर कंट्रोल नहीं किया गया तो दिन-ब-दिन तापमान बढ़ता रहेगा और एक दिन ये विश्व पानी में समा जाएगा।