एल्युमिनियम की कड़ाही में न बनाएं साग: इसके पतीले में दूध उबालना भी गलत, बच्चों की सेहत पर पड़ सकता है बुरा असर
आज भी कई घरोंं में एल्युमिनियम के सॉसपैन और पतीले इस्तेमाल किए जाते हैं। इस धातु के बर्तनों में खाना बनाने का चलन अभी भी बना हुआ है। इसका नुकसान शरीर को भुगतना पड़ता है। हाॅलिस्टिक हेल्थ कोच शेफाली बत्रा के अनुसार, लोहे और मिट्टी के बर्तन में खाना बनाना सबसे अच्छा होता है।
पुराने जमाने में एल्युमिनियम के बर्तनों में कैदियाें को खाना दिया जाता था क्योंकि एल्युमिनियम के बर्तनों में खाने से उनके शरीर और दिमाग कमजाेर पड़ेगा। सस्ता होने की वजह से गरीब घरों में इस धातु के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
अध्ययनों के अनुसार शरीर में बहुत ज्यादा एल्युमिनियम होने से इसका याददाश्त पर बुरा असर पड़ता है। इस धातु उद्योग से जुड़े वर्कर्स पर हुई स्टडी में यह पाया गया।
एल्युमिनियम का बर्तन बनाते समय उसमें कई दूसरी धातु भी मिलाई जाती हैं। उसमें मौजूद हैवी मेटल्स का शरीर पर बुरा असर होता है।
इस धातु के बर्तन में खाना बनाकर छोड़ देना भी गलत है। हालांकि अभी शोधों से कैंसर के साथ इसके प्रत्यक्ष संबंध नहीं पाए गए हैं लेकिन जब दूसरे विकल्प हो, तो एल्युमिनियम के बर्तनों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
कुछ शोधों में यह पाया गया कि एल्युमिनियम का बुरा असर ब्रेन पर पड़ता है। इसकी वजह से बच्चों में डिस्लेक्सिया और ऑटिज्म की समस्या के चांसेज होते हैं और उनके व्यवहार से जुड़े कामों में कठिनाइयां आती हैं।
खाना किसमें बनाना बेहतर
मनुष्य का शरीर पंचतत्वों से बना है। इसमें से एक तत्व मिट्टी भी है। यही वजह है कि मिट्टी के बर्तनों में खाने से व्यक्ति प्रकृति से जुड़ाव महसूस करता है। मिट्टी पूर्ण से प्राकृतिक है।
दक्षिण भारत में इडली–डोसा बनाने के लिए मिट्टी के बरतनों में फर्मेंटेशन किया जाता है, जो शरीर को लाभ पहुंचाते हैं।
एल्युमिनियम की बजाय हरी साग-सब्जियों को बनाने के लिए लोहे की कड़ाही का उपयोग करना चाहिए। लोहे की कड़ाही में पका लेने के बाद इसे दूसरे बर्तन में निकाल कर रख दें।